बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 शिक्षाशास्त्र - शैक्षिक आकलन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- बुद्धि को परिभाषित कीजिये। इसके विभिन्न प्रकारों तथा बुद्धिलब्धि के प्रत्यय का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
बुद्धि एक ऐसा सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग हम अपने दिन-प्रतिदिन के बोल-चाल की भाषा में काफी करते है। तेजी से सीखने तथा समझने, अच्छे स्मरण तथा तार्किक चिन्तन आदि गुणों के लिए हम दिन-प्रतिदिन की भाषा में बुद्धि शब्द का प्रयोग करते हैं। बुद्धि शब्द को अलग- अलग मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। इन सभी परिभाषाओं को मूलतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है।
1. पहले श्रेणी में उन परिभाषाओं को रखा गया है जिसमें बुद्धि को वातावरण के साथ समायोजन करने की क्षमता के आधार पर परिभाषित किया गया है। जो व्यक्ति जितनी ही जल्दी से वातावरण के साथ समायोजन कर लेता है। उसे उतनी ही तीव्र बुद्धि का समझा जाता है।
2. दूसरी श्रेणी में उन परिभाषाओं को रखा गया है जिसमें बुद्धि को सीखने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया गया है। जिस व्यक्ति में यह क्षमता जितनी अधिक होगी उस व्यकित में बुद्धि भी उतनी ही होगी।
3. तीसरे श्रेणी में उन परिभाषाओं को रखा गया है जिसमें बुद्धि को अमूर्त चिन्तन करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया गया है। यह क्षमता जिस व्यक्ति में जितनी ही अधिक होती है, उस व्यक्तियों में बुद्धि भी उतनी ही होगी।
परन्तु बाद में इस वर्गीकरण की आलोचना करते हुए कहा गया कि प्रत्येक श्रेणी की परिभाषाओं में बुद्धि के एकमात्र पहलू या पक्ष को आधार मानकर बुद्धि को परिभाषित किया गया है। बुद्धि में केवल एक ही तरह की क्षमता (या पहलू) सम्मिलित नहीं होती है बल्कि इसमें अनेक तरह की क्षमताएँ जिन्हें सामान्य क्षमता कहा जाता है, सम्मिलित होता है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को दूसरे ढंग से परिभाषित किया है -
"बुद्धि एक समुच्चय या सार्वजनिक क्षमता है जिसके सहारे, व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रिया करता है, विवेकशील चिन्तन करता है तथा वातावरण के साथ प्रभावकारी ढंग से समायोजन करता है।'
'बुद्धि से तात्पर्य संज्ञानात्मक व्यवहारों के सम्पूर्ण वर्ग से होता है जो व्यक्ति में सूझ द्वारा समस्या समाधान करने की क्षमता, नयी परिस्थितिओं के साथ समायोजन करने की क्षमता, अमूर्त रूप से सोचने की क्षमता तथा अनुभवों से लाभ उठाने की क्षमता को दिखलाता है।" -'रॉबिन्सन तथा रॉबिन्सन 1965 '
बुद्धि उन क्रियाओं को समझने की क्षमता है जिनकी विशेषताएँ-
(1) कठिनता
( 2 ) जटिलता
(3) अमूर्तता
(4) मितव्ययिता
(5) किसी लक्ष्य के प्रति अनुकूलनशीलता
(6) सामाजिक मान तथा
(7) मौलिकता की उत्पत्ति होती है और कुछ परिस्थिति में वैसी क्रियाओं को जो शक्ति की एकाग्रता तथा सांवेगिक कारकों के प्रति प्रतिरोध दिखलाता है, करने की प्रेरणा देती है। - स्टोडाई 1941
इन सभी परिभाषाओं की एक सामान्य विशेषता यह है कि इन परिभाषाओं में बुद्धि को कई क्षमताओं का योग माना गया है यही कारण है कि इन परिभाषाओं का एक सामान्य विश्लेषण करने पर हम निम्न तथ्य पर पहुँचते है-
(i) बुद्धि विभिन्न क्षमताओं का सम्पूर्ण योग होता है।
(ii) बुद्धि के सहारे व्यक्ति किसी समस्या के समाधान में सुझ का सहारा लेता है।
(iii) बुद्धि के सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रियाएँ करता है।
(iv) बुद्धि व्यक्ति को वातावरण के साथ प्रभावकारी ढंग से समायोजन या अनुकुलन करने में मदद करता है।
(v) बुद्धि से व्यक्ति में विवेकशील चिन्तन तथा अमूर्त चिन्तन करने में भी मदद मिलती है।
(vi) बुद्धिमान व्यक्ति प्रायः कठिन एवं जटिल कार्य को समझकर करते है इनके कार्यों में मौलिकता अधिक होती है।
विवरण से स्पष्ट है कि बुद्धि का स्वरूप कुछ ऐसा होता है जिसे किसी एक कारक या क्षमता के आधार पर नहीं समझा जा सकता है।
बुद्धि के प्रकार
ई. एल. थॉर्नडाइक ने बुद्धि के तीन प्रकार बतलाये है जो इस प्रकार हैं-
1. सामाजिक बुद्धि - सामाजिक बुद्धि से तात्पर्य वैसी मानसिक क्षमता से होता है जिसके सहारे व्यक्ति अम्य व्यक्तियों को ठीक ढंग से समझता है तथा व्यवहार कुशलता भी दिखलाता है। ऐसे लोगों का सामाजिक संबंध काफी अच्छा होता है तथा समाज में इनकी प्रतिष्ठा काफी अच्छी होती है इनमें सामाजिक कौशलता काफी होती है। यही कारण कि ऐसे व्यक्ति एक अच्छे नेता बन जाते है।
2. अमूर्त बुद्धि - अमूर्त चिंतन से तात्पर्य वैसी मानसिक क्षमता से होता है जिसके सहारे व्यक्ति शाब्दिक तथा गणितीय संकेतों एवं चिन्हों के संबंधों को आसानी से समझा जाता है तथा उसकी उचित व्याख्या कर पाता है। ऐसा व्यक्ति जिसमें अमूर्त बुद्धि अधिक होती है, एक सफल कलाकार, पेन्टर तथा गणितज्ञ आदि होता है।
3. मूर्त बुद्धिं - मूर्त बुद्धि से तात्पर्य वैसी मानसिक क्षमता होता है जिसके सहारे व्यक्ति ठोस वस्तुओं के महत्व को समझता है तथा उसका ठीक ढंग से भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में परिचालन करना सीखता है इस तरह की बुद्धि की जरूरत व्यापार एवं भिन्न-भिन्न तरह के व्यवसायों में अधिकतर पड़ती है ऐसे बुद्धि वाले व्यक्ति एक सफल व्यापारी बन सकते है।
अतः स्पष्ट है कि बुद्धि के मुख्य तीन प्रकार है। इन प्रकारों के बीच कोई स्पष्ट रेखा नहीं है। यह नहीं कह सकते कि जिसमें सामाजिक बुद्धि अधिक होगी उसमें मूर्त्त बुद्धि तथा अमूर्त बुद्धि कम होगी और मूर्त्त बुद्धि अधिक होगी तो अमूर्त बुद्धि तथा सामाजिक बुद्धि कम होगी।
बुद्धि लब्धि
बुद्धि मापने के लिए सबसे पहला बुद्धि परीक्षण बिने तथा साइमन ने 1905 में विकसित किया इस परीक्षण में बुद्धि को मानसिक आयु के रूप में मापकर अभिव्यक्ति किया गया 1916 में बिने साइमन परीक्षण का सबसे महत्वपूर्ण संशोधन टरमैन ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय ने किया। इसी संशोधन में बुद्धि-लब्धि के संप्रत्यय का जन्म हुआ और बुद्धि को मापने में मानसिक आयु की जगह पर बुद्धि-लब्धि का प्रयोग होने लगा। 1912 ई. में विलियम स्टर्न ने इस पर पहले ही अपने सुझाव दे रखे थे।
बुद्धि-लब्धि मानसिक आयु तथा तैथिक आयु का एक ऐसा अनुपात है जिससे 100 से गुणा कर प्राप्त किया जाता है यही कारण है कि इस अनुपात को बुद्धि-लब्धि भी कहा जता है।
सूत्र -
बुद्धि-लब्धि = मानसिक आयु / तैथिक आयु x 100
या
IQ = MA / CA x 100
उदाहरण - मान लिया जाए कि किसी बुद्धि परीक्षण द्वारा मापने पर 6 साल के बच्चे की मानसिक आयु 5 साल की आती है और एक 4 साल के बच्चे की मानसिक आयु 5 साल की आती है तो पहले बच्चे की बुद्धि-लब्धि 5/6 x 100 = 83 आयेगी तथा दूसरे बच्चे की बुद्धि- लब्धि 5 / 4 x 100 = 125 आयेगी। स्पष्टतः दूसरा बच्चा पहले बच्चे से, बुद्धि में अधिक प्रखर है। मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि-लब्धि के भिन्न-भिन्न मान के अर्थ को स्पष्ट एवं वस्तुनिष्ठ करने के लिए एक सामान्य तालिका बनायी है-
अतः बुद्धि-लब्धि द्वारा हमें व्यक्ति के बौद्धिक स्तर का पता लगाया जा सकता है। बुद्धि- लब्धि द्वारा व्यक्ति के बुद्धि की अभिव्यक्ति ठीक ढंग से होती है फिर भी आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि-लब्धि के इस अर्थ के प्रति असंतोष व्यक्त किया है। इनके अनुसार व्यक्ति की मानसिक आयु सामान्यतः 18-19 साल के उम्र के बाद नहीं बढ़ती हैं परन्तु उसका तैथिक आयु में वृद्धि होती रहती है ऐसी परिस्थिति में 19 साल के उम्र के बाद के प्रत्येक उम्र के व्यक्तियों की बुद्धि- लब्धि यदि उक्त सूत्र से ज्ञात कीजिए तो वह उतरोत्तर कमती जायेगी।
आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुद्धि-लब्धि प्राप्तांक द्वारा किसी बुद्धि परीक्षण पर समान उम्र के अन्य व्यक्तियों की तुलना में व्यक्ति के निष्पादन का पता चलता है। व्यक्ति के प्राप्तांक की व्याख्या उसके अपने उम्र के मानक से किया जाता है।
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